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Dipawali भगवान श्री राम के आने पर मनाई जाती है लेकिन पूजा लक्ष्मी गणेश की क्यों होती है ?

Dipawali भगवान श्री राम के आने पर मनाई जाती है लेकिन पूजा लक्ष्मी गणेश की क्यों होती है ?

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दीपावली का पर्व भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख त्योहार है और इसे अनेक धार्मिक, पौराणिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोणों से मनाया जाता है। यह एक ऐसा अवसर है जब घर-घर में दीप जलाए जाते हैं, हर कोना सजाया जाता है और लोग अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलकर खुशियाँ बाँटते हैं। दीपावली का मतलब केवल घरों में दीप जलाना ही नहीं है, बल्कि यह जीवन में हर प्रकार के अंधकार का नाश करने और खुशियों, सुख-समृद्धि तथा सौभाग्य का स्वागत करने का प्रतीक है। इस पर्व के कई पहलू और मान्यताएँ हैं, जिन्हें समझना दिलचस्प है। आइए इसे और गहराई से समझते हैं:

1. भगवान राम और दीपावली का ऐतिहासिक संबंध

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दीपावली का पर्व भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने राम का स्वागत दीप जलाकर और नगर को सजाकर किया। यह दिन आश्विन माह की अमावस्या का था, जब अंधकार को दूर करने के लिए पूरे नगर को दीपों से आलोकित किया गया।

धार्मिक संदेश: यह पर्व धर्म की विजय और अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है। भगवान राम के आदर्श जीवन और मर्यादा पालन की भावना को सम्मान देने के लिए इसे मनाया जाता है, जो यह दर्शाता है कि जब भी अधर्म या बुराई का नाश होता है, तो समाज में उजाला होता है।

2. लक्ष्मी पूजा का महत्व

दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। माता लक्ष्मी धन, समृद्धि और वैभव की देवी मानी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि दीपावली की रात वे पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और स्वच्छ तथा उज्ज्वल घरों में निवास करती हैं। इसलिए लोग दीपावली के दिन अपने घरों की सफाई करते हैं, उन्हें सजाते हैं, ताकि माता लक्ष्मी उनके घर में प्रवेश करें और समृद्धि का आशीर्वाद दें।

लक्ष्मी का प्राकट्य: समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी माता प्रकट हुई थीं। इसलिए, दीपावली को उनके स्वागत का पर्व माना गया। पूजा में लक्ष्मी जी का स्वागत करने के लिए उन्हें फूल, मिठाई, और दीपों से सजाया जाता है। इस दिन उन्हें नए वस्त्र और आभूषण अर्पित किए जाते हैं, ताकि उनके माध्यम से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे।

व्यापारिक समाज में महत्व: व्यापारियों के लिए यह पर्व विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसे नए वित्तीय वर्ष का आरंभ भी माना जाता है। वे इस दिन अपने बहीखाते और लेखा-जोखा की पूजा करते हैं और नए सिरे से अपने व्यापार की शुरुआत करते हैं।

3. गणेश पूजा का महत्व

लक्ष्मी माता की पूजा के साथ-साथ भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है। गणेश जी को “विघ्नहर्ता” माना जाता है, यानी वे सभी बाधाओं को दूर करने वाले देवता हैं। कोई भी शुभ कार्य उनकी पूजा के बिना आरंभ नहीं किया जाता। उनके आशीर्वाद से सुख और शांति बनी रहती है और पूजा बिना किसी विघ्न के संपन्न होती है।

लक्ष्मी और गणेश की संयुक्त पूजा का महत्व: लक्ष्मी और गणेश की संयुक्त पूजा का अर्थ यह भी है कि हमें न केवल धन की आवश्यकता है, बल्कि साथ ही बुद्धि और विवेक भी चाहिए ताकि धन का सदुपयोग हो सके। गणेश जी से बुद्धि का आशीर्वाद मिलने से व्यक्ति सही मार्ग पर चलता है और लक्ष्मी माता की कृपा से उसे समृद्धि प्राप्त होती है।

4. दीप जलाने का महत्व

दीप जलाना दीपावली का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे केवल भगवान राम के स्वागत में जलाए गए दीपों की याद के रूप में ही नहीं, बल्कि जीवन से अज्ञानता और अंधकार को दूर करने के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। दीप जलाने से चारों ओर रोशनी फैलती है, जो ज्ञान, उम्मीद और अच्छाई का प्रतीक है।

प्रकाश का पर्व: दीपावली की रात अमावस्या होती है, जो वर्ष की सबसे अंधेरी रात होती है। दीपों से इस रात को रोशन करना यह संदेश देता है कि भले ही कितना भी अंधकार क्यों न हो, एक छोटा सा दीपक भी उम्मीद का संदेश लेकर आता है। इसे संपूर्ण समाज में सकारात्मकता और उल्लास का प्रतीक माना जाता है।

5. साफ-सफाई और सजावट का महत्व

दीपावली के समय घर की साफ-सफाई का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि लक्ष्मी माता स्वच्छ और सुंदर स्थानों पर वास करती हैं। इसलिए लोग घर की सफाई करते हैं, दीवारों को रंगते हैं, घर को रंगोली, दीप, और फूलों से सजाते हैं। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और लक्ष्मी माता का आशीर्वाद प्राप्त करने की उम्मीद की जाती है।

सजावट और नवीनता: नए वस्त्र धारण करना, घर को सजाना और रंगोली बनाना दीपावली के सांस्कृतिक पहलुओं का हिस्सा है। यह न केवल बाहरी सौंदर्य के लिए है, बल्कि आंतरिक संतोष और प्रसन्नता का भी प्रतीक है।

6. सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

दीपावली का पर्व समाज में एकता, प्रेम और सद्भाव का संदेश देता है। इस अवसर पर लोग अपने मित्रों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों से मिलते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं, और एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं। इससे समाज में मेलजोल और भाईचारा बढ़ता है।

आर्थिक गतिविधियाँ: दीपावली के समय विभिन्न प्रकार की आर्थिक गतिविधियाँ भी होती हैं, जैसे नए वस्त्र खरीदना, आभूषण खरीदना, घर की सजावट के सामान खरीदना आदि। यह आर्थिक क्षेत्र में भी बहुत सक्रियता और समृद्धि लाता है।

7. दीपावली का संदेश

दीपावली का पर्व केवल धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण संदेश भी देता है:

इस प्रकार, दीपावली का पर्व न केवल एक धार्मिक त्योहार है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मकता, समृद्धि और खुशियों का संदेश देता है।

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भगवान श्री राम के चरित्र का वर्णन

भगवान श्री राम का चरित्र भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में आदर्श मानव, मर्यादा पुरुषोत्तम और धर्मपालन का प्रतीक माना जाता है। उनका जीवन और चरित्र हम सभी के लिए एक प्रेरणा है, जो सच्चाई, कर्तव्य, त्याग, विनम्रता, और सहनशीलता का संदेश देता है। वे केवल एक महान राजा ही नहीं थे, बल्कि आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श भाई और एक आदर्श मित्र भी थे।

आइए भगवान श्री राम के चरित्र के प्रमुख गुणों का वर्णन करें:

1. मर्यादा पुरुषोत्तम

भगवान राम को “मर्यादा पुरुषोत्तम” कहा जाता है, जिसका अर्थ है मर्यादा में रहने वाले सर्वोत्तम पुरुष। वे हमेशा धर्म का पालन करते थे और अपने जीवन के हर पहलू में मर्यादा को सर्वोपरि रखते थे। उन्होंने अपने पिता, माता, गुरु और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन किया और किसी भी परिस्थिति में मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया।

जब माता कैकेयी ने उन्हें 14 वर्षों के लिए वनवास का आदेश दिया, तो उन्होंने बिना किसी संकोच के इसे स्वीकार किया, भले ही वे जानते थे कि सिंहासन पर उनका अधिकार था। इस घटना से यह समझा जा सकता है कि उनके लिए मर्यादा और कर्तव्य सबसे पहले थे।

2. आदर्श पुत्र

भगवान राम अपने माता-पिता के प्रति अत्यंत सम्मान और आज्ञा का पालन करते थे। जब महाराज दशरथ ने उन्हें वनवास का आदेश दिया, तो उन्होंने इसे अपनी जिम्मेदारी मानकर सहर्ष स्वीकार किया और माता-पिता की आज्ञा का पालन किया।

राम ने अपने पिता की इच्छाओं का आदर किया, भले ही इसका मतलब अपना राज्य, अपना परिवार और सभी सुख-वैभव छोड़ना हो। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि उनकी इस आज्ञापालन से उनके पिता का कोई अनादर न हो। उनके इस चरित्र ने उन्हें आदर्श पुत्र का स्थान दिया।

3. त्याग और सहनशीलता

राम के जीवन का हर पहलू त्याग और सहनशीलता का प्रतीक है। उन्होंने राजसी सुखों और ऐश्वर्य का त्याग किया और वनवास का कष्ट सहर्ष स्वीकार किया।

उन्होंने अपने जीवन में हर कठिनाई का सामना किया, चाहे वह वन में कठिन जीवन हो, सीता का हरण हो, या रावण जैसे शक्तिशाली राजा से युद्ध हो। उन्होंने अपनी सहनशीलता और धैर्य से सभी चुनौतियों का सामना किया और कभी भी अपनी धर्मनिष्ठा से विचलित नहीं हुए। उनका जीवन हमें सिखाता है कि त्याग और सहनशीलता से कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है।

4. आदर्श पति

भगवान राम अपने पत्नी सीता के प्रति असीम प्रेम और निष्ठा रखते थे। जब सीता का हरण हुआ, तो उन्होंने अपनी पत्नी को बचाने के लिए अनेक कष्ट सहे और रावण जैसे शक्तिशाली असुर का वध किया।

उनकी निष्ठा का एक और उदाहरण तब देखने को मिलता है जब उन्होंने सीता के बिना जीवन नहीं बिताया और उन्हें बचाने के लिए समुद्र पार कर लंका तक पहुंचे। राम ने सीता के प्रति प्रेम, निष्ठा, और सुरक्षा का हर संभव प्रयास किया।

हालांकि, सीता की अग्निपरीक्षा के प्रसंग में राम के निर्णय का आलोचना भी हुई है, लेकिन उन्होंने यह निर्णय अपनी निजी भावनाओं के बजाय समाज की मर्यादाओं और लोगों की भावनाओं का आदर करते हुए लिया।

5. धर्म का पालन और न्यायप्रियता

राम ने हमेशा धर्म और सत्य का पालन किया। उनके लिए धर्म और न्याय सर्वोपरि थे। एक राजा के रूप में, उन्होंने हमेशा अपनी प्रजा की भलाई का ध्यान रखा और अपने व्यक्तिगत सुख-दुख को समाज के हित में बलिदान कर दिया।

उनकी न्यायप्रियता का एक उदाहरण यह है कि उन्होंने शबरी के जूठे बेर खाए, जो उनके सामाजिक समता और सच्चे प्रेम को दिखाता है। शबरी एक साधारण भक्त थीं, लेकिन भगवान राम ने उनके प्रेम का आदर करते हुए उनकी भावनाओं का मान रखा।

6. आदर्श मित्र

राम अपने मित्रों के प्रति भी समर्पित थे। उन्होंने निषादराज गुह के साथ अपनी मित्रता निभाई और केवट, हनुमान, सुग्रीव, विभीषण जैसे मित्रों के प्रति भी आदर और स्नेह दिखाया। उन्होंने सुग्रीव को राजा बनाने के लिए बाली का वध किया और विभीषण को लंका का राज्य सौंपा। राम ने हमेशा अपने मित्रों का सम्मान किया और उनके प्रति अपने कर्तव्यों को निभाया।

7. शत्रु के प्रति उदारता

भगवान राम का चरित्र शत्रु के प्रति भी उदारता और सहानुभूति दिखाता है। जब रावण पर विजय प्राप्त हुई, तो उन्होंने विभीषण को लंका का राजा बनाकर यह सिद्ध किया कि वे व्यक्तिगत विजय से ऊपर थे। उन्होंने रावण के अंतिम संस्कार का भी आदरपूर्वक प्रबंध किया, जो उनके उदार हृदय और उनके शत्रु के प्रति करुणा का प्रतीक है।

8. समर्पण और विनम्रता

राम हमेशा विनम्र और समर्पित रहते थे, चाहे वे राजा हों या वनवासी। वे कभी भी घमंड नहीं करते थे और अपने कर्तव्यों का पालन करने में संपूर्ण समर्पण दिखाते थे। वे अपने गुरुओं, माता-पिता और समाज के प्रति हमेशा विनम्र और सम्मानपूर्ण रहे।

9. प्रजा के प्रति प्रेम और संवेदनशीलता

राजा बनने के बाद भी भगवान राम अपनी प्रजा के प्रति बेहद संवेदनशील और समर्पित थे। उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन से अधिक प्रजा की भलाई को महत्व दिया। अयोध्या की प्रजा के मन में किसी भी प्रकार की शंका दूर करने के लिए उन्होंने सीता को त्याग दिया। उन्होंने अपने सुख-दुख से अधिक अपनी प्रजा के विश्वास और सम्मान को महत्व दिया।

10. प्रकृति और जीव-जंतुओं से प्रेम

भगवान राम का प्रेम केवल मनुष्यों तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति भी करुणा और प्रेम दिखाया। वन में अपने वनवास के दौरान वे वन्यजीवों और प्रकृति के साथ समरसता में रहते थे और सभी जीवों को समान दृष्टि से देखते थे।


भगवान श्री राम का चरित्र हमें धर्म, कर्तव्य, त्याग, मर्यादा और विनम्रता की महत्ता सिखाता है। उनका जीवन संदेश देता है कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी धर्म का पालन किया जा सकता है और कैसे सच्चे मनुष्य बन सकते हैं। उनके चरित्र की उच्चता और महानता हमें सिखाती है कि एक आदर्श जीवन कैसे जिया जा सकता है और सभी के प्रति प्रेम, आदर और कर्तव्यनिष्ठा बनाए रखी जा सकती है। उनका जीवन हम सभी के लिए आदर्श और प्रेरणास्रोत है।

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